'समाज एक परिवार है। परिवार में जैसे हम सभी आत्मीयता के साथ जीते हैं। एक-दूसरे के प्रति पूरा उत्तरदायित्व निभाते हैं, ऐसे ही हमें समाज में जीना होता है। जिस समाज में एक दूसरे के सुख में सुखी और दुख में दुखी हुआ जाता है, वहीं समाज प्रगति करता है।' ये उद्बोधन सोमवार को पादरु स्थित कुशल कांति मणि नगर में श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए उपाध्याय मणिप्रभसागर महाराज ने दिया। उन्होंने कहा कि आज हमारे समाज की क्या दशा है। यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। समाज को ऊंचा उठाने के लिए हर व्यक्ति को पुरुषार्थ करना होगा। एक-दूसरे के प्रति सहयोग का भाव रखना होगा। मैं तो मैं हूं हीं, वह भी मैं हूं, यह सूत्र हमारे मन मानस मस्तिष्क में प्रतिष्ठित होना चाहिए तो कोई हमें दूसरा नहीं लगेगा। उसका काम मेरा काम महसूस होगा तो परनिंदा नहीं होगी। क्रोध नहीं होगा तो ईष्र्या और द्वेष भी नहीं होगा। उन्होंने कहा कि हम अपने ही भाई का सहयोग नहीं कर सकें तो कोई बात नहीं, पर हमें टांग खींचने का कोई अधिकार नहीं है। अंत में आयोजक मोहनलाल गुलेच्छा ने गुरु भगवंतों का आभार व्यक्त किया।
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